- निर्भय गुर्जर भी करता था कुसुमा के निशाने की तारीफ
- पहली बार विक्रम मल्लाह ने चलवाई थी कुसुमा से गोली
- फूलन देवी से अधिक क्रूर थी कुसुमा नाइन
- 2004 में दस्यु सरगना रामआसरे उर्फ फक्कड़ के साथ किया था सरेंडर
- डरू नाई और सावित्री की इकलौती संतान थी कुसुमा
Dr. Rakesh Dwivedi
साँसे क्या थमी…? काया मिट्टी में बदल गई। खौफ के कारण जिन्हें उसकी परछाई तक से डर लगता था वे अब करीब से जाकर देख लेना चाहते थे। साल दर साल बीतने के साथ दस्यु सुन्दरी और स्वभाव से जिद्दी कुसुमा नाइन की कहानी भी बदलती रही। गाँव के ही एक विजातीय के प्रेमजाल में फँसकर वह बीहड़ की राह पकड़ने को विवश हुई। उसका तो फूलन देवी की तरह कोई ज़मीनी विवाद भी नहीं था। डरु नाई और सावित्री की वह इकलौती और लाडली संतान थी लेकिन उसकी चंचलता और शोख अदाओं ने पूरे घर को परेशानी में ला खड़ा किया था। तब अपनी इज्जत बचाने को डरु को क्या कुछ नहीं करना पड़ा था…? बेटी के पाँव घर की चौखट तक लाने को उनके दरवाजे भी इज्जत बचाने को शीश नवाना पड़ा, जहां जाना उसे कभी गवारा नहीं था। लेकिन उसकी संतान को अपने पिता के दर्द से ज्यादा अपनी कल्पनाओं में उड़ने का शौक था। इसके कारण मायके और ससुराल दोनों का सुख-चैन छिन चुका था। यहाँ तक माता-पिता को हमेशा के लिए अपना गाँव छोड़ना पड़ा।
कुसुमा ने करीब ढाई दशक तक दस्यु जीवन बिताकर सबसे क्रूर होने का विश्लेषण भी पाया। उसका निशाना बेहद सटीक था, ये अन्य डाकू भी मानते थे। लालाराम खुद तो अच्छा निशाना नहीं लगा पाया लेकिन कुसुमा को निशानेबाजी जरूर सिखा दी थी। पहली बार विक्रम ने उससे गोली चलवाई थी। निर्भय ने एक बार कहा था कि यदि कुसुमा न होती तो फक्कड़ को वही मार लेता। 1977 के मई महीने में घूँघट ओढ़कर बहू बनकर ससुराल आई दस्यु सुन्दरी कुसुमा नाइन करीब 48 वर्ष बाद दोबारा जब अपनी ससुराल कुरौली बंद साँसों के साथ पहुँची, तब उसे घूँघट की जगह कफन नसीब हुआ।
कुसुमा का अंतिम संस्कार टिकरी में हो या कुरौली में...? इसको लेकर अंत तक सस्पेंस बना रहा। अंत में उसके पति केदार उर्फ रूठे ने फैसला किया कि भले ही कुछ समय के लिए कुसुमा उसकी पत्नी रही हो लेकिन आखिरी समय वही रीति रिवाज के साथ अंतिम संस्कार कर अपने पति धर्म के साथ न्याय करेंगे। केदार उर्फ रूठे ने ही कुसुमा की चिता को मुख़ाग्नि दी।
आइए अब थोड़ा पीछे की ओर चलते हैं। कुसुमा का विवाह कुरौली के रामेश्वर नाई के पुत्र केदार उर्फ रूठे के साथ 1977 (रूठे के अनुसार 1976) में हुआ था। उस वक्त कुसुमा की उम्र करीब 13 वर्ष थी। शादी के बाद चौथी पर घर आने के आठ दिन बाद वह पड़ोस के निवासी सुन्दर लाल केवट के पुत्र माधो के साथ घर से चुपचाप गोहानी चली गई। घर वालों को इसकी जानकारी सुबह हुई। इसके बाद उसे किसी तरह घर लाकर उसका गौना कराया गया। ससुराल वाले गौना करने के लिये बड़ी मुश्किल से तैयार हुए। कुसुमा कुछ ही दिन ससुराल रह पाई थी कि 1978 में एक रात विक्रम मल्लाह और माधो केवट ने डकैतों के साथ घर पर धावा बोलकर कुसुमा को अपने साथ बीहड़ ले गए थे। इसके बाद से कुसुमा का कुरौली फिर कभी आना-जाना नहीं हुआ। हालांकि उसकी रजामंदी से केदार ने कुंती के साथ दूसरी शादी कर अपनी गृहस्थी बसा ली थी। कुसुमा ने कई गिरोहों के साथ रहकर करीब 25 वर्ष का दस्यु जीवन बिताया।
कुसुमा के आपराधिक जीवन की शुरुआत 1980 में हुई। औरैया के ग्राम नौनी में विक्रम मल्लाह, माधो सहित गैंग ने कुसुमा को ले जाकर डकैती डाली थी। तब छत पर खड़े होकर कुसुमा चिल्ला-चिल्लाकर गाँव वालों को धमका रही थी। कुसुमा के नाम पर डकैती डाली जाए, यह योजना विक्रम की थी। उसे लगा कि बीहड़ की जिंदगी से घबराकर कुसुमा कहीं घर न लौट जाए इससे पहले उसे अपराध में शामिल करा दिया जाए। इस दौरान गोलियाँ दाग़ रहे विक्रम की एक गोली छत पर खड़ी कुसुमा के पैर में लगी थी। इलाज के लिए उसे दिल्ली ले जाया गया था।
कुसुमा लालाराम के बाद फक्कड़ गिरोह में रही। इस दौरान उसके द्वारा की जाने वाली कई क्रूरता पूर्ण घटनाएं सामने आईं। जून 2004 में उसने फक्कड़ के साथ आत्म समर्पण किया था। कुसुमा काफी समय से टीबी रोग से ग्रसित थी। बीड़ी पीने की आदी इस दस्यु सुंदरी का इलाज लखनऊ चल रहा था। 01 मार्च 2025 की रात 10.15 बजे इलाज के दौरान कुसुमा की मृत्यु हो गई। उसके निधन की खबर पाकर क्षेत्र भर में चर्चा शुरू हो गई। हर कोई उसे देखना चाहता था।
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